क्यों वृंदावन की होली जग प्रसिद्ध है ?


Posted March 7, 2023 by radhavallabhmandir

आज के समय में जब भी होली त्यौहार का नाम मुख में आता है. तो कहीं न कहीं सभी का ध्यान एक बार अवश्य ब्रज की होली वृंदावन की होली पर जाता है।

 
आज के समय में जब भी होली त्यौहार का नाम मुख में आता है. तो कहीं न कहीं सभी का ध्यान एक बार अवश्य ब्रज की होली वृंदावन की होली पर जाता है।

होली बसंत ऋतु का एक अंग है गो• श्रीहित हरिवंश महाप्रभु स्वयं अपनी वाणी श्री हित चतुरासि में कहते है। सदा बसंत रहत वृंदावन बसंत ऋतु श्रृंगार रस विशेष ऋतु कही गई है मदन की ऋतु कही गई है इसी लिये इसका एक नाम मदनौत्सव भी कहा है। ब्रज में बसंत ऋतु का आगमन जो वैदिक पंचांग से देखा जाये तो वह चेत्र और वैशाख है लेकिन यह ऋतु इतनी प्रेममई है इसलिए ब्रज के प्रेम देश में इसका स्वागत इसके आने के 40 दिवस पहले आरंभ हो जाता है

• वैसे तो हर ऋतु का समय 60 दिन का का बताया गया है लेकिन जो
• उस ऋतु के प्रभाव का असल काल है उसको 40 दिवस बताया है
• जैसे 60 दिवस की ऋतु है उसके पहले 20 दिवस और जो पिछली ऋतु थी उसके 20 दिवस इन्हीं 40 दिवस को ब्रज में त्यौहार
के रूप में मनाया जाता है
• इसी लिए होली का आरंभ बसंत पंचमी से आरंभ होकर डोल तक रहता है।

बसंत से ही श्री राधावल्लभ लाल के सन्मुख किंचित रंग उड़ना आरंभ हो जाता है। व श्रृंगार में विशेष रूप से आम की पोर और बसंत ऋतु के अनुकूल श्रृंगार आते हैं। क्युकी श्री जी महाराज ही श्रृंगार रस की सीमा हैं इसलिए वह बसंत का श्रृंगार करके इस ऋतु का आरंभ करती हैं और उल्लसित होकर आगे के रंग खेल का आरंभ करते हैं।

जैसे फागुन पूर्णिमा से रंग और बढ़ता है और जो पुराणिक समय से राग की सेवा चलती आ रही है इसी शृंखला में समाज में मुख्य रूप से धमार आरंभ हो जाती है और धमार में खासकर होली ही गई जाती है। होली का अर्थ क्या है उत्साह धूम धमाका तो यह धमारे उत्साह बढ़ाने वाली होती हैं। फिर आगे फूलेरादोज से श्रीजी को कपोलो पर रंग लगता है कमर पर फैंटा बंधा होता है। और आगे रंग भरी एकादशी से पिचकारी और अंत में होलिका दहन वाले दिन होली लीला का विश्राम हो जाता है

और जिस दिन सारा संसार होली मनाता है उस से पहले ही श्रीजी होली खेल चुके होते हैं। मानो ऐसा की फाग यहां आकर सेवा करी और फिर बाद में जिस दिन सारी दुनिया होली खेल रही है तो वह श्रीजी की प्रसाद रूप में होली मना रही है।
होली का जो प्राचीन रूप है वो इस समय ब्रज में देखने में आता है

जैसे होली की विशेष मिठाई गुजिया कहीं गई है लेकिन ब्रज में जलेबी आती है। इसका भी एक महत्व है क्योंकि गुलाल उड़ते समय उसका रंग शरीर के अंदर चला जाता है तो उस समय चाशनी युक्त पदार्थ पाना काफी फायदेमंद होता है।
होली के दिनों में डाफ वाद्य यंत्र बजता है।

यहां पर राग और भोग विशेष हैं। और आज भी श्री राधावल्लभ लाल मंदिर में पारंपरिक रूप से होली में राग में धमार और भोग में जलेबी आती है।

यहां पर गिली होली में जो रंग बनाया जाता है। वह विशेष रूप से टेसु के फूल का बनता है इन दिनों में जो गुलाल और ये टेसु का पानी यह आने वाले दिनों के लिए एक शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाना वाले होता है गर्मी में होने वाले कुछ समस्याएं फोड़े फुंसी से यह बचाता है। बहुत गंभीर विचार करना चाहिए कि यहां की होली भावना में तो उच्चतम है उत्साह वर्धक है लेकिन होली मनाने की विधि भी विज्ञान की दृष्टि से काफी प्रभावशाली है।

अंत में कहें तो जैसा होली का प्राचीन रूप वृंदावन में है वह और कहीं नहीं। इसीलिए यहाँ के रसिक लोग कहते हैं। कैसा ये देश निगोड़ा जगत होरी ब्रज होरा जगत की होली और ब्रज का होली का भी बड़ा रूप होला।
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Last Updated March 7, 2023